सतत एवं व्यापक मूल्यांकन:-
सतत शब्द का अर्थ है निरंतर अर्थात ऐसी प्रक्रिया जो निरंतर चलती रहे। अधिगम एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।अतः हमारा आकलन और मूल्यांकन भी एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए ना कि एक समय का कार्यक्रम ।हमें ऐसे मूल्यांकन पर बल देना चाहिए जो शिक्षण अधिगम के चलते हुए किया जाए। इस प्रकार के मूल्यांकन को सतत एवं व्यापक मूल्यांकन कहा जाता है।
सतत मूल्यांकन का अर्थ अधिगम की कमियों का नियमित परीक्षण और विश्लेषण भी है तथा सुधारात्मक उपायों को लागू करना और अध्यापकों तथा विद्यार्थियों को उनका स्वयं का मूल्यांकन आदि करने के लिए पुनः परीक्षण और प्रतिपुष्टि करना है ।
सतत मूल्यांकन ,बालक क्या जानता है, क्या नहीं जानता है ,अधिगम परिस्थितियों में क्या कठिनाई अनुभव करता है और अधिगम में उसकी क्या प्रगति है, जो शिक्षा का उद्देश्य है को समझने का नियमित अवसर प्रदान करता है।
व्यापक शब्द से हमारा तात्पर्य शैक्षिक एवं सह- शैक्षिक दोनों क्षेत्रों में विद्यार्थी के विकास से है।व्यापक मूल्यांकन में छात्रों के संज्ञानात्मक पक्ष ,भावात्मक पक्ष तथा क्रियात्मक पक्ष पर तीनों सम्मिलित होते हैं, जिनका मूल्यांकन दक्षता आधारित विधि से संभव नहीं होता है ।
शैक्षिक क्षेत्र का संबंध बौद्धिक विकास से है जबकि सह- शैक्षिक क्षेत्र का संबंध भौतिक विकास, सामाजिक, व्यक्तिगत विशेषताओं का प्रसार ,रुचियां, मनोवृत्तियां से है। विद्यार्थियों के विकास में सभी पक्षों का मूल्यांकन करने के लिए मूल्यांकन की बहुविध तकनीकियों उपयोग करने की आवश्यकता होती है ।सतत एवं व्यापक मूल्यांकन बहुविध तकनीकियों का संघ है और लोग जैसे अध्यापक ,विद्यार्थी अभिभावक तथा समाज इसमें सम्मिलित होते हैं।
विद्यालयों में प्रभावी और नियमित रूप से सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को लागू करने की आवश्यकता को लंबे समय से अनुभव किया जा रहा है। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को स्कूल शिक्षा के सभी स्तरों पर संस्थागत करने की आवश्यकता है ।अनेक स्कूल बोर्ड अब CCE के महत्व पर जोर दे रहे हैं और राज्यों के शिक्षा विभाग के सहयोग से इसे स्कूलों में लागू करने के उपाय कर रहे हैं। सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को बोर्ड के मूल्यांकन के विकल्प के रूप में ना देख कर उसके पूरक के रूप में देखना चाहिए।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की विशेषताएं
1-सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में विद्यार्थियों के सभी पक्षों को शामिल किया जाता है
2-सतत मूल्यांकन का सतत पक्ष मूल्यांकन की निरंतरता और आवर्तिता पर ध्यान देता है।
3-सतत मूल्यांकन का अर्थ विद्यार्थियों की शिक्षा के प्रारंभ में मूल्यांकन और शिक्षण प्रक्रिया की अवधि में मूल्यांकन करना तथा अनौपचारिक रूप में बहुविध तकनीक का मूल्यांकन के लिए प्रयोग करना है।
4-सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का व्यापक पक्ष बच्चे के व्यक्तित्व के चतुर्मुखी विकास के आकलन को ध्यान में रखता है। इसमें विद्यार्थी के शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक पक्षों का आकलन सम्मिलित होता है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के लाभ
1-इस मूल्यांकन के द्वारा बच्चे का सर्वमुखी विकास किया जाता है।
2-विषय वस्तु के छोटे भाग पर नियमित समयान्तर पर सीखने वालों के अधिगम की प्रगति को इंगित करता है।
3-विभिन्न शिक्षण सहायकों और प्रविधियों को अधिगम में शामिल कर शिक्षण को सरल बनाना
4-अधिगम प्रक्रिया में अधिगमकर्ता के क्रियाकलापों को सम्मिलित करना
5-अधिगमकर्ता की विशेषताओं को पहचानना और प्रोत्साहित करना जैसे कुछ बच्चे शैक्षिक में अच्छा नहीं करते हैं परंतु सह- शैक्षिक पाठ्यकृत क्षेत्र में अच्छा करते हैं।
निष्कर्ष
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के माध्यम से बालक की योग्यता तथा अयोग्यता के बारे में नियमित रूप से उपयोगी तत्वों का संकलन संभव हो सकेगा। इन तथ्यों का प्रयोग ऐसे उपचारात्मक शिक्षण यंत्र तथा समृद्ध शिक्षण के रूप में किया जा सकेगा जिससे कि बालकों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का अधिकतम विकास किया जा सके और शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके ।इस पृष्ठपोषण से ना केवल विद्यार्थियों को मापन, वर्गीकरण और प्रमाणीकरण में सहायता मिलेगी अपितु उसकी कार्यकुशलता एवं सफलता के स्तर को सुधारने में मदद मिलेगी इस प्रकार के रचनात्मक मूल्यांकन के द्वारा उसके अधिकतम विकास की व्यवस्था को सक्षम बनाया जा सकेगा। विद्यार्थी परीक्षा के भय से मुक्त हो सकेंगे और सहज भाव से मूल्यांकन के लिए तत्पर रहेंगे। सतत मूल्यांकन सार्थक ज्ञानके लिए निदान का पथ प्रशस्त करता है। प्राथमिक शिक्षक अपने ज्ञान तथा कार्य कुशलता की सहायता से मूल्यांकन का प्रयोग विद्यार्थी के ज्ञानार्जन की कठिनाइयों और उसके कारणों का निदान करने के लिए कर सकता है ।वह उचित उपचारात्मक साधन अपनाकर उसकी प्रगति तथा क्षति को कम कर सकता है तथा उसे अधिकतम ज्ञान प्राप्त करने में सहायता कर सकता है । --अनुप्रिया
Important information,thanks
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