हिंदी में लिपि और वर्तनी का मानक रूप

हिंदी में लिपि और वर्तनी का मानक रूप


भाषा
सदा से ही भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त साधन रहा है। संसार का संपूर्ण ज्ञान बिना भाषा  ज्ञान के व्यर्थ है। भाषा शिक्षण का मूल उद्देश्य बालक को भाषायी कौशल यथा सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना में प्रवीण करना है जिससे वह मौखिक और लिखित दोनों ही रूप में प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्ति कर सकें।

 श्रवण एवं वाचन कौशल पठन और लेखन की कुशलता के आधार स्तंभ हैं। मौखिक अभिव्यक्ति कौशल जितना उम्दा होगा पठन और लेखन में उतनी ही निपुणता आएगी। भाषा शिक्षण के द्वारा बच्चों में चिंतन करने की  क्षमता का विकास किया जाता है। भाषा शिक्षण से कल्पना शक्ति का विकास करना और अपने विचारों को सही शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करना भी संभव है।

अनेक शिक्षाविदों ने प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए मातृभाषा को ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम माना है ।मातृभाषा में शिक्षण से बच्चे सहज भाव से ,सरलता पूर्वक सीखते हैं और उनकी सृजनात्मक शक्ति का भी विकास होता है। मातृभषा की शिक्षा एक विषय की शिक्षा ना होकर संपूर्ण  शिक्षा की धुरी है।इसे शिक्षा के मूल में रखकर शिक्षण को प्रभावी और सार्थक बनाया जा सकता है।

कक्षा एक से पूर्व बालक सामाजिक परिवेश के माध्यम से सुनना बोलना स्वाभाविक रूप से सीख चुका होता है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, तो उसका शुद्ध -शुद्ध ज्ञान होना अति आवश्यक है। हिंदी वर्णमाला और हिंदी वर्तनी की एकरूपता और मानकीकरण अत्यंत आवश्यक है। सरकार द्वारा 1967 में हिंदी वर्तनी का मानकीकरण भी किया गया परंतु उचित प्रचार-प्रसार के अभाव में देश में कहीं भी हिंदी वर्तनी के मानक रूप का प्रयोग नहीं हो रहा है जिसका असर हमारे नौनिहालों पर पर रहा है
हिंदी एक ध्वन्यात्मक भाषा है, अर्थात जैसा हम बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं ।यदि किसी शब्द का उच्चारण ही हम अशुद्ध करेंगे तो लिखेंगे भी अशुद्ध ही। इसलिए प्रथम चरण में मानक लिपि चिन्हों की सही पहचान उनका सही उच्चारण और तदनुरूप सही लेखन तथा मानक वर्तनी के प्रयोग पर बल दिया जाता है।

हिंदी वर्तनी में एकरूपता लाने के लिए जो मानकीकरण किया गया है उससे संबंधित प्रमुख नियम निम्न प्रकार हैं:-


1. संयुक्त वर्ण--
  
  (क) खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रुप खड़ी पाई को हटाकर बनाया जाएगा जैसे लग्न, विघ्न, व्यास ,श्लोक ना कि लगन,विधन ,वयास,शलोक।

    (ख) अन्य व्यंजनों में--

(१) क और फ़ के संयुक्ताक्षर वक़्त, रफ़्तार ,धक्का आदि की भांति लिखे जाएं ना की वक्त, रफ्तार, धकका्  के रूप में।
(२) ड; छ,ट ,ठ, ड ,द और के संयुक्ताक्षर हल चिन्ह(्) लगाकर ही बनाए जाएं -‌‍‍ भुट् टा, वाड़्मय,चड् ढा,पद् मा, चिह्न न आदि।
(३) संयुक्त र के तीनों रूपों का प्रयोग पूर्व की भांति होता रहेगा-भ्रष्ट, प्रचार, धर्म, कर्म,राष्ट्र।
(४)श्र का प्रचलित रुप ही मान्य रहेगा-श्रवण (शर्वण नहीं) । त+र के संयुक्त रूप के लिए त्त्र,व त्र दोनों ही रूप मान्य होंगे।
(५) (्)हल्नत लगे वर्ण से बनने वाले संयुक्ताक्षरों में आ की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजनों के पहले किया जाएगा। पूरे युग्म से पहले लिखना गलत होगा।यथा-द्वितीय,बुद्धि,छुट्टियां आदि। दि्वतीय,बुदि्ध,छुटि्टयां -ये लिखना गलत होगा।

2.विभक्ति चिह्न-

(१) संज्ञा शब्दों में विभक्ति चिन्ह प्रतिपादक से अलग लिखना सही होगा यथा -मोहन ने,रमा को ,पायल से  आदि ।सर्वनाम शब्दों में  विभक्ति चिह्न को प्रतिपादक के साथ मिलाकर लिखना सही होगा। इसने ,इसको, इससे आदि।
(२) सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिन्ह का प्रयोग हो रहा हो तो प्रथम को इसके साथ मिलाकर तथा दूसरे को अलग से लिखना सही होगा जैसे -इसके लिए ,इसमें से।

3.हाइफन-हाइफन का प्रयोग स्पष्टता के लिए किया जाता है।
(१) राम -लक्ष्मण ,लेन -देन ,पढ़ना -लिखना , खाना -पीना जैसे द्वंद्व समास में पदों के बीच हाइफन का प्रयोग किया जाता है।
(२) तत्पुरुष समास में हाइफन लगाने की आवश्यकता नहीं है जैसे रामराज्य, गंगाजल, भारतवासी आदि। परन्तु भ्रम की स्थिति में हाइफन का प्रयोग किया जाता है जैसे भू-तत्व।
अ-नख (नख के बिना)
अ-नख(क्रोध)
अ-नति(नम्रता का भाव)
अनति,(थोड़ा)
इन शब्दों में हाइफन के प्रयोग से इन शब्दों का वास्तविक अर्थ पता चलता है। यदि हाईफन का प्रयोग ना किया जाए तो अर्थ बदल जाता है।
4.अव्यय-अव्यय को हमेशा अलग से ही लिखा जाता है जैसे- कहां तक, तुम्हारे साथ, यहां तक ,श्री राम, गांधीजी आदि।

5.विदेशी ध्वनियां-वैसे शब्द जो अंग्रेजी, अरबी -फा़रसी से आए हैं और अब हिंदी  भाषा में पूर्णतया घुल मिल चुके हैं उन्हें उस रूप में ही लिखा जाना है जैसे- कलम, किला, दाग(कल़म , कि़ला ,दाग़ नहीं)

6.हल् चिह्न-संस्कृत से आए जिन शब्दों में हल चिन्ह का प्रयोग लुप्त हो चुका है उन्हें वैसे ही लिखा जाना चाहिए  जैसे महान ,विद्वान, सम्राट(महान् , विद्वान् , सम्राट् नहीं)

7.स्वन परिवर्तन-संस्कृत से आए तत्सम शब्दों की वर्तनी को बदलने का प्रयास करना उचित नहीं है। ब्रह्मा को ब्रम्हा,चिह्न को चिन्ह लिखना सही नहीं है।
अशुद्ध               शुद्ध
 ग्रहीता            गृहीता
अत्याधिक      अत्यधिक    
प्रदर्शिनी          प्रदर्शनी

8.'ऐ ' , 'औ' का प्रयोग- है , और आदि में 'ऐ 'का प्रयोग किया जाता है और भैया कौन, कौवा आदि में 'औ' का प्रयोग किया जाता है।भय्या, कव्न,कव्वा सही नहीं है।

9. कुछ अन्य नियम 
१- शिरोरेखा का प्रयोग पहले की भांति होता रहेगा। 
२- पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई(।) का प्रयोग किया जाएगा तथा
३- पूर्ण विराम को छोड़कर शेष विराम आदि सभी चिन्ह वही ग्रहण किए जाएंगे जो अंग्रेजी में प्रचलित हैं-
(-    ;  ?  !  :  =)

गरदन/गर्दन, गरमी /गर्मी,सर्दी/सरदी ,भरती/भर्ती ,बरतन/बर्तन , दोबारा/दुबारा , बीमारी/बिमारी , फुर्सत/फुरसत, कुर्सी/कुरसी -इन शब्दों के सभी रूप मान्य हैं।                  
                                                  --अनुप्रिया

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