गिद्ध

यह कविता वैश्विक महामारी कोरोना पर  लिखी गई है। इस महामारी में अनेक लोग मानवता को छोड़कर सिर्फ अपने फायदे को देख रहे हैं ।कहीं नकली वैक्सीन का कारोबार हो रहा है तो कहीं जरूरत के सामान महंगे दाम पर बिक रहे हैं ।किसी को भी पीड़ित की कोई चिंता नहीं है सभी अपने फायदे के बारे में सोचते हैं। कुछ लोग आपदा को अवसर में बदलकर मानवता को तार-तार कर रहे हैं।


                             गिद्ध
धरती पर
बदल गया ठौर है
आया
 गिद्धों का दौर है
जैसे कभी डायनासोर हुआ करते थे ।
महामारी ,
लाचार ,बेबस, मजबूर लोग
 बड़े ,छोटे ,अमीर, गरीब
 सबने मजबूर कर दिया है
 और आमंत्रित भी 
गिद्धों को 
और वे अपने आवरण 
से निकल कर टूट पड़े हैं 
हर ओर........
 हॉस्पिटल से लेकर किराना स्टोर तक
 ऑक्सीजन से लेकर वैक्सीन तक
 मानवता की बोटी नोचते
 हर ओर..........

                                             अनुप्रिया
                                      M.Sc(chem),B.Ed
     

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