यह कविता कोरोना काल में हमारे कुुछ न कर पाने की मनोदशा को व्यक्त करता है ।यह हमारे जीवन में आया ऐसा संकट है जिसमें हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हमारे देश में संंकट केे समय साथ काम करने की परंंपरा रही है परन्तु इस वैैश्विक महामारी में हमारा एक दूसरेे से अलग रहनाा ही आवश्यक है।
इस कठिन दौर मेंं,
युद्ध से भी बदतर हालात में,
जब मानवता सबसे बुरे दौर
से गुजर रही है,
कि वक्त था कुछ कर गुजरने का
और हम घर में कैद हैं.......
पर सच में यदि कुछ करना है,
चाहते हो कि हालात बदले,
तो तुम्हारा घर में होना
सबसे ज्यादा जरूरी है।
अनुप्रिया
M.Sc(chem),B.Ed.
Thanks 👍 very nice poem
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